बलिया(संजय कुमार तिवारी): बसन्त पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है इसी दिन से भारत में बसंत ऋतु का आगमन होता है। इस दिन कई लोग कामदेव की पूजा करते है। किसानों के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व है। बसन्त पंचमी पर सरसो के खेत लहलहा उठते है। चना, जौ, ज्वार, गेहूं की बालियां खिलने लगती है। इस दिन से ऋतुराज बसंत का प्रारम्भ होता है। इस दौरान मौसम सुहाना हो जाता है। और पेड़ पौधों में नए फल-फूल पल्लवित होने लगते है। कड़कड़ाती ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। पलाश के लाल फूल, आम के पेड़ पर आए बौर, हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को सुहाना बना देती है। यह ऋतु सेहत की दृष्टि से भी बहुत अच्छी मानी जाती है। मनुष्य के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। अध्यात्म वेत्ता पं० भरत जी पाण्डेय ने बताया कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन सरस्वती का जन्म हुआ था। इसलिए हिन्दुओं की इस त्योहार में गहरी आस्था है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व होता है.
बसन्त पंचमी का शुभ मुहूर्त :
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का प्रारंभ 16 फरवरी को तड़के 3 बजकर 36 मिनट पर हो रहा है जो 17 फरवरी दिन बुद्धवार को सुबह 5 बजकर 46 मिनट तक है। ऐसे में बसन्त पंचमी का त्योहार 16 फरवरी को मनाया जाएगा। 16 फरवरी को सुबह 6 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट के बीच सरस्वती पूजा का विशेष मुहूर्त बन रहा है।
इस दिन प्रातःकाल स्नानादि कर पीले वस्त्र धारण करे। मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखे। तत्पश्चात कलश स्थापित कर भगवान गणेश व नवग्रह की विधिवत पूजन करे। माता श्वेत वस्त्र धारण करती है इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं। श्वेत फूल माता को अर्पण किया जाता है। विद्यार्थी मां सरस्वती का पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करे। संगीत से जूड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगाकर मां की अराधना करे।