बिहार

जागरूकता से ही शिशु मृत्यु दर में कमी संभव

पूर्णिया(रंजीत ठाकुर): लोगों को शिशुओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता व उनका सही तरह से देखभाल ही देश में शिशु मृत्यु दर को रोकने का बेहतर विकल्प है। गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं की देखभाल के साथ ही उचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा इस संबंध में कई अतिमहत्वपूर्ण योजनाओं को लागू कर देश में शिशुओं की मृत्यु दर को रोकने हेतु कार्य किए जा रहे हैं। वर्तमान में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लोगों तक पहुंचे इसके लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा लगातार आवश्यक कार्य किया जा रहा है। शिशुओं को बेहतर जीवन देने के लिए लोगों को महिला के गर्भावस्था से ही उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखना आवश्यक है। गर्भवती महिलाओं का सही पोषण, समय पर टीका, नियमित जांच स्वास्थ्य शिशु के जन्म में सहायक होता है। जन्म के बाद भी शिशुओं को सभी आवश्यक जरूरतें जैसे छः माह तक केवल स्तनपान, समय पर टीका लगाना, सही पोषण का सेवन उन्हें स्वास्थवर्धक बनाता है। लोगों तक महिला व शिशु के स्वास्थ्य की सभी तरह की जानकारी उपलब्ध हो सके इसके लिए सरकार द्वारा समेकित बाल विकास परियोजना (आईसीडीएस) चलायी जाती है । जहां लोग स्वास्थ्य व पोषण सम्बन्धी सभी जानकारी हासिल कर सकते हैं।

गर्भावस्था के पूर्व से लेकर प्रसव के बाद तक शिशुओं की करें बेहतर देखभाल : डीपीओ

आईसीडीएस डीपीओ राखी कुमारी ने बताया कि नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य माता के स्वास्थ्य से जुड़ा होता है। इसलिए माँ को गर्भावस्था पूर्व से अपने स्वास्थ्य को सुदृढ़ रखना चाहिए। महिलाओं के शरीर में खून की कमी होती है जिसके लिए गर्भावस्था पूर्व से ही उन्हें आयरन, फॉलिक एसिड की गोली का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही इस दौरान उन्हें आयरन युक्त आहार के सेवन को प्राथमिकता देनी चाहिए। गर्भावस्था के बाद प्रसव पूर्व जांच, टेटनस टीका भी गर्भवती महिला को लेना जरूरी होता है। प्रसव के बाद नवजात शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए जन्म के 1 घंटे के भीतर स्तनपान, 6 माह तक केवल स्तनपान, कंगारू मदर केयर, शिशुओं की निमोनिया जांच एवं टीका उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।

सही पोषण शिशुओं के लिए जरूरी :

पोषण अभियान की जिला समन्यवक निधि प्रिया ने कहा शिशुओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उनको बेहतर पोषण का मिलना बहुत जरूरी है। 6 माह बाद से ही शिशुओं को स्तनपान कराने के साथ आवश्यक पौष्टिक भोजन, ऊपरी आहार के रूप में देना चाहिए। आंगनबाड़ी केन्द्रों पर लोगों को शिशुओं के पूरक पौष्टिक आहार की जानकारी नियमित तौर पर सेविकाओं द्वारा दी जाती है। इसके साथ ही केंद्रों में सेविका एवं एएनएम के द्वारा अपने-अपने पोषक क्षेत्रों के नवजात शिशुओं की नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण आदि करवायी जाती है। पोषण अभियान के जिला परियोजना सहायक सुधांशु कुमार ने कहा कि आंगनवाड़ी सेविकाओं द्वारा नवजात शिशुओं को उम्र के साथ वजन एवं लम्बाई भी लिया जाता है, जिससे यह पता चलता हैं कि बच्चे का सही लालन-पालन हो रहा है। किसी तरह की कमी होने पर उन्हें सम्बंधित जांच एवं पोषणयुक्त आहार सम्बंधित जानकारी भी दी जाती है।

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शिशुओं के इन लक्षणों के प्रति रहें सतर्क :

• यदि शिशु के साँस लेने में समस्या हो
• शिशु स्तनपान नहीं कर पा रहा हो
• शिशु शारीरिक तापमान बनाए रखने में असमर्थ हो (हाइपोथर्मिया)
• शिशु सुस्त हो गया हो एवं शारीरिक गतिविधि में कमी हो

प्रसव के बाद इन बातों का रखें खयाल :

• जन्म के शुरूआती 1 घन्टे में स्तनपान की शुरुआत एवं अगले 6 माह तक केवल स्तनपान
• शिशु को गर्म रखने एवं वजन में वृद्धि के लिए कंगारू मदर केयर का करें इस्तेमाल
• गर्भ नाल को रखें सूखा. ऊपर से कुछ भी लगाने से करें परहेज
• 6 माह के बाद स्तनपान के साथ शिशु को दें ऊपरी पौष्टिक आहार
• निमोनिया एवं डायरिया होने पर तुरंत लें चिकित्सकीय सलाह
• सम्पूर्ण टीकाकरण कराएं।

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