बिहार

कलश स्थापना के साथ मंदिरों में गूंजे मां के जयकारे

अररिया, रंजीत ठाकुर शारदीय नवरात्र के पहले दिन गुरुवार को घरों में कलश स्थापना के साथ हीं नौ दिनों का व्रत और देवी मंदिरों में दर्शन-पूजन का सिलसिला शुरू हो गया। प्रखंड भर के प्रमुख देवी मंदिरों में प्रथम स्वरुप मां शैलपुत्री की दर्शन-पूजन के लिए भक्तों का तांता लगा रहा। श्रद्धालुओं ने चुनरी,नारियल आदि चढ़ाकर मां से सुख समृद्धि की कामना की।

सिमरबनी,महथावा,जयनगर,कुशमोल,रघुनाथपुर,सोनापुर,भरगामा,खुटहा बैजनाथपुर, हरीपुरकला,कदमाहा सहित कई देवी मंदिरों को आकर्षक ढंग से सजाया गया है। इस मौके पर जगह-जगह भजन कीर्तन और अखंड मानस पाठ का आयोजन किया गया है। नवरात्रि के पहले दिन लोग अपने घरों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर कलश स्थापित कर देवी मां की नौ दिवसीय आराधना की शुरुआत कर चुके हैं। नवरात्र की शुरुआत के साथ हीं विभिन्न स्थलों पर पंडाल बनाने का कार्य भी जोर पकड़ चुका है। महथावा दुर्गा मंदिर के पुजारी हरेराम झा बताते हैं कि कलश को तीर्थो का प्रतीक माना जाता है और इसकी स्थापना एक जगह पर सभी देवी-देवताओं का आवाह्नन करने के लिए की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,कलश के विभिन्न भागों में त्रिदेवों का वास होता है।

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कलश का आकार गोल होता है और इसका मुख छोटा होता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु,कंठ में भगवान शिव और मूल में ब्रह्मा जी का स्थान माना गया है। कलश का मध्य भाग मातृशक्तियों का निवास स्थान माना जाता है। इस कारण से नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार खाली कलश को शुभ नहीं माना जाता है, इसलिए कलश को पहले जल से भर दिया जाता है। पानी से भरे हुए कलश को संपन्नता और धन-धान्य का प्रतीक माना जाता है। कलश को जल से भरने के बाद कलश में दूर्वा, सुपारी,अक्षत डाले जाते हैं। इसके ऊपर आम के पत्ते लगाए जाते हैं। दूर्वा को संजीवनी के गुण,जीवन और उमंग का प्रतीक माना जाता है।

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