बिहार

शिशु संवर्द्धन विषय पर फ्रंट लाइन कर्मियों (FLWs) की क्षमता वृद्धि की दिशा में प्रखंड स्तरीय कर्मियों के साथ तीन दिवसीय महत्वपूर्ण प्रशिक्षण समपन्न

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पूर्णिया, (न्यूज़ क्राइम 24) जिले में शिशुओं के शुरुआती छ: महीनों में होने वाले आरंभिक वृद्धि अवरोध (EGF) की पहचान एवं प्रबंधन को सुदृढ़ करने हेतु दिनांक 17 से 19 नवम्बर तक होटल सेंटर पॉइंट, पूर्णिया में प्रखंड पूर्णिया पूर्वी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी- डॉ शरद कुमार एवं परियोजना पूर्णिया ग्रामीण के बाल विकास परियोजना पदाधिकारी- रूपम कुमारी की अध्यक्षता में तीन दिवसीय ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण अंतर्गत प्रखंड पूर्णिया पूर्वी के परियोजना पूर्णिया ग्रामीण के चयनित 25 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, 25 आशा सहित आशा फैसिलिटेटर, महिला पर्यवेक्षिका की क्षमता को विकसित करना था, ताकि समुदाय स्तर पर शिशुओं और माताओं के लिए गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ सुनिश्चित की जा सकें।

यह प्रशिक्षण यूनिसेफ बिहार के तकनीकी सहयोग से आयोजित किया गया, जिसमें पटना से सुश्री वृंदा, श्री अनूप, तथा पूर्णिया से पोषण समन्वयक सुश्री निधि भारती ने प्रमुख संसाधन-व्यक्ति के रूप में सत्रों का संचालन किया। तीनों प्रशिक्षकों ने प्रतिभागियों को शिशु पोषण, वृद्धि निगरानी, स्तनपान परामर्श, जोखिम पहचान तथा समुदाय-आधारित `प्रबंधन प्रक्रियाओं पर व्यापक मार्गदर्शन प्रदान किया। अनिमिया मुक्त भारत समन्वयक शुभम् गुप्ता एवं ईजीएफ सलाहकार- एमडी सब्बीर के सहयोग से प्रशिक्षण कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। प्रशिक्षण में प्रतिभागियों को बताया गया कि बिहार में जन्म के शुरुआती महीनों में कम वजन, समय से पहले जन्म, संक्रमण तथा अनुचित स्तनपान जैसी वजहों से बड़ी संख्या में शिशु विकास की दृष्टि से जोखिम में रहते हैं। विशेषज्ञों ने रेखांकित किया कि पहले छ: माह शिशु की शारीरिक, मानसिक और संज्ञानात्मक वृद्धि का सर्वाधिक संवेदनशील समय है, इसलिए इस अवधि में किसी भी प्रकार की पोषण-संबंधी कमी लंबे समय तक प्रभाव डाल सकती है।

प्रशिक्षण के दौरान FLWs को EGF की चार-चरणीय पहचान एवं प्रबंधन प्रक्रिया—आकलन, वर्गीकरण, देखभाल के स्तर का निर्धारण तथा सामुदायिक प्रबंधन—का विस्तृत अभ्यास कराया गया। “6 कदम” जैसे महत्वपूर्ण व्यवहारिक मॉड्यूल्स के माध्यम से यह समझाया गया कि समय पर पहचान, उचित परामर्श, नियमित फॉलो-अप और समुदाय व स्वास्थ्य प्रणाली के बीच मजबूत समन्वय से अधिकांश शिशुओं की स्थिति घर-परिवार में रहते हुए भी सुधारी जा सकती है।

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प्रतिभागियों को विशेष रूप से यह भी प्रशिक्षित किया गया कि –

  • जन्म के बाद 1 सप्ताह से लेकर 6 माह तक की निर्धारित विज़िट में किन संकेतों पर ध्यान देना है,
  • स्तनपान की सही पोज़िशनिंग, अटेचमेंट और आवृत्ति का आकलन कैसे करें,
  • कब शिशु को गंभीर जोखिम की श्रेणी में रखकर SNCU/NRC रेफर करना आवश्यक है,
  • तथा कैसे Poshan Tracker, M-ASHA और VHSND जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हुए ट्रैकिंग और समन्वय को मजबूत किया जा सकता है।

इस अवसर पर यूनिसेफ प्रतिनिधियों ने कहा कि यह प्रशिक्षण न केवल FLWs को तकनीकी कौशल प्रदान करता है, बल्कि उन्हें परिवारों के साथ प्रभावी संचार स्थापित करने और व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करने में भी सक्षम बनाता है। कार्यक्रम से स्वास्थ्य और ICDS तंत्र के बीच तालमेल बढ़ेगा तथा कम वजन के साथ जन्मे शिशुओं पर लक्षित सेवाओं की गुणवत्ता बेहतर होगी।

तीन दिवसीय प्रशिक्षण में प्रतिभागियों ने विभिन्न, केस-स्टडी, समूह अभ्यास और डेमो सत्रों के माध्यम से वास्तविक परिस्थितियों में उपयोगी कौशल अर्जित किए। प्रशिक्षण के समापन पर प्रतिभागियों ने इसे अपने कार्य में अत्यंत उपयोगी बताते हुए कहा कि इससे बच्चों की वृद्धि एवं पोषण स्थिति में सुधार लाने में निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

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