पटना, अजित। हिंदी सिनेमा की महान अभिनेत्री ललिता पवार की पहचान एक सख्त और खलनायिका जैसी सास के किरदार में रही है। उनके जीवन में एक ऐसा हादसा हुआ जिसने उनकी पूरी जिंदगी और करियर को बदल दिया। एक जोरदार थप्पड़ ने न सिर्फ उनकी आंख की रोशनी पर असर डाला, बल्कि चेहरे पर लकवा भी मार गया। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने अभिनय के दम पर फिल्मी दुनिया में अलग पहचान बनाई।
ललिता पवार का जन्म 18 अप्रैल 1916 को नासिक, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका असली नाम अंबा लक्ष्मी था। उनके पिता एक कपड़े के व्यापारी थे। ललिता को बचपन से ही अभिनय का शौक था। उन्होंने महज़ 12 साल की उम्र में फिल्म राजा हरिश्चंद्र (1928) से अपने करियर की शुरुआत की, जो मूक फिल्म थी।25 फरवरी 1998 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन आज भी उनके द्वारा निभाए गए किरदार लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं। उनका जीवन इस बात की मिसाल है कि अगर किसी में आत्मविश्वास हो, तो वह किसी भी मुश्किल का सामना करने मे सक्षम होता है.
इसके बाद उन्होंने कई मूक फिल्मों में काम किया। 1931 में उन्होंने पहली बोलती फिल्म हिम्मत-ए-मर्दां में अभिनय किया। 1932 में उन्होंने फिल्म कालियान में मुख्य भूमिका निभाई। इसके बाद 1933 में छोटे नवाब, 1934 में गुलामी, 1935 में अंकल टॉम और 1937 में दुनिया क्या जाने जैसी फिल्मों में काम किया।
1938 में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान अभिनेता भगवान दादा को एक सीन में उन्हें थप्पड़ मारना था। यह सीन बार-बार शूट हुआ और एक बार भगवान दादा ने इतना जोर से थप्पड़ मार दिया कि उनकी आंख की नस फट गई। इसका असर उनके चेहरे पर पड़ा और आंख पर लकवा मार गया। ललिता पवार ने इलाज कराया, लेकिन एक आंख हमेशा के लिए प्रभावित हो गई।
इस हादसे के बाद ललिता पवार ने करियर में नई शुरुआत की। उन्होंने नकारात्मक और चरित्र भूमिकाएं निभाना शुरू किया। उन्होंने 420 से ज़्यादा फिल्मों में अभिनय किया। फिल्म श्री 420, अनाड़ी, तीसरी कसम, अमर प्रेम, अंकुर, नूरी, नाम, राम लखन, हम दोनों जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को खूब सराहा गया।
ललिता पवार ने टेलीविज़न धारावाहिक रामायण में मंथरा का यादगार किरदार निभाया। यह भूमिका इतनी प्रभावशाली थी कि लोगों ने उन्हें असल ज़िंदगी में भी मंथरा समझ लिया था। उनकी गिनती उन चंद अभिनेत्रियों में होती है जिन्होंने नायिका से लेकर खलनायिका और चरित्र भूमिका तक हर भूमिका में अपनी छाप छोड़ी।
ललिता पवार ने दो शादियाँ की थीं। पहली शादी असफल रही, लेकिन दूसरी शादी राजप्रेमी से हुई जो खुद भी फिल्म प्रोड्यूसर थे। उन्होंने पुणे के पास अपने फार्महाउस में अपनी ज़िंदगी के अंतिम दिन बिताए।