फुलवारी शरीफ, अजित. जो बच्चे अब तक स्कूलों से दूर है शिक्षा ( तालीम) की रोशनी से मैहरूम है, उन्हें जीवन मे ईल्म क़ी अहमियत का अहसास कराने के लिए शिक्षा से जोड़ने में सभी लोगों को आ जाना चाहिए. जो बच्चे स्कूलों से अब तक दूर है उन्हें स्कूल में एडमिशन करा कर उनका जीवन सवाल में अपना योगदान देना चाहिए यह सबसे बड़ी मानवता की सेवा होगी. हारुण नगर में यह बातें मौलाना रिजवान अहमद इस्लामी ने कहा.
मौलाना रिजवान अहमद इस्लाही ने कहा है कि हर मुसलमान को अपने मोहल्ले के कम से कम पांच बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. वह जुमा 9 मई को हारून नगर सेक्टर-1 की मस्जिद में ‘शिक्षा के प्रसार में मुसलमानों की भूमिका’ विषय पर खुत्बा (व्याख्यान) दे रहे थे.उन्होंने कहा कि समाज को चाहिए कि वह दुनियावी तालीम के साथ-साथ कुरान की शिक्षा भी प्राप्त करे.उन्होंने कहा कि दूसरी मजहबों की शिक्षा लेने में भी कोई हर्ज नहीं, बशर्ते वह नुकसानदेह न हो.
मौलाना ने कहा कि मुस्लिम समाज को अपनी शिक्षा स्थिति का जायजा लेना चाहिए और विशेषकर मजदूर वर्ग को तालीम से जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए.उच्च शिक्षा में मुस्लिमों की भागीदारी बेहद कम है, इस पर फौरन ध्यान देना होगा.
मौलाना ने अपील की कि जिन बच्चों का अब तक एडमिशन नहीं हुआ है, उनके लिए लोग खुद आगे आएं और स्कूल में दाखिला कराएं.उन्होंने कहा कि ड्राइवर, मेड और मजदूर वर्ग के बच्चे शिक्षा में सबसे ज्यादा पिछड़ जाते हैं क्योंकि उनके गार्जियन को शिक्षा की अहमियत नहीं पता होती.उन्होंने कहा कि रोटी, कपड़ा और मकान की तरह तालीम भी बुनियादी जरूरत है। अगर समाज शिक्षा से महरूम रहेगा तो उसका नतीजा भी उतना ही गंभीर होगा. उन्होंने कहा कि अज्ञानता सिर्फ निरक्षरता नहीं है, बल्कि इसमें यौन उच्छृंखलता, आर्थिक भ्रष्टाचार और भेदभाव जैसी बुराइयां भी शामिल हैं.मौलाना ने कहा कि इस्लाम ने शिक्षा को बहुत अहमियत दी है. कुरान में सवाल किया गया है कि जानने वाले और न जानने वाले क्या बराबर हो सकते है. उन्होंने बताया कि हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के समय मदीना की नौ मस्जिदों को शिक्षा का केंद्र बनाया गया था उन्होंने कहा कि इस्लाम ने दीनी और दुनियावी शिक्षा का भेद नहीं किया, यह फर्क हमने बनाया है. इस्लाम सिर्फ लाभप्रद शिक्षा की बात करता है.