बिहार

समुदाय स्तर पर जरूरी प्रयास किये जाने से कुपोषण के मामलों में आयेगी कमी

अररिया(रंजीत ठाकुर): वैश्विक महामारी के दौर में सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य व पोषण संबंधी योजनाओं का संचालन प्रभावित हुआ है। वहीं दूसरी तरफ समाज के गरीब तबके के लोगों की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है। लिहाजा ऐसे परिवार के छोटे-छोटे बच्चों की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करना बड़ी चुनौती बन कर उभरी है। एक अनुमान के मुताबिक कोरोना संक्रमण की वजह से राज्य में कुपोषण संबंधी मामलों में 15 फीसदी का इजाफा हुआ है। इन विपरित परिस्थितियों में अति गंभीर कुपोषित बच्चों के बेहतर देखभाल की जरूरतें बढ़ी है। संवर्द्धन कार्यक्रम के जरिये अब इसमें सुधार का प्रयास किया जा रहा है। नीति आयोग द्वारा चयनित राज्य के पांच आकांक्षी जिलों में संवर्द्धन कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है। इसमें अररिया भी शामिल है।

स्वास्थ्य कर्मियों के लिये विशेष प्रशिक्षण शिविर आयोजित :

संवर्द्धन कार्यक्रम आईसीडीएस व स्वास्थ्य विभाग के परस्पर सहयोग से संचालित किया जाना है। इसमें पीरामल स्वास्थ्य, यूनिसेफ, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा सहित अन्य सहयोगी संस्था की मदद ली जा रही है। स्वास्थ्य व आईसीडीएस सहित संबंधित अन्य सहयोगी संस्था के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को कुसियारगांव पार्क में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया । इसमें दर्जनों की संख्या में एएनएम ने भाग लिया। कार्यक्रम का उद्घाटन सिविल सर्जन डॉ एमपी गुप्ता, आईसीडीएस डीपीओ सीमा रहमान, जिला पोषण समन्वय कुणाल कुमार ने संयुक्त रूप से किया।

कुपोषित बच्चों की समुदाय आधारित देखभाल महत्वपूर्ण :

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कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिविल सर्जन ने कहा कि अतिकुपोषित बच्चों को समुदाय में ही रखकर उन्हें कुपोषण से जुड़ी चुनौतियों से मुक्त कराना संवर्द्धन कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है। पूर्व में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र भेजा जाता था। हालिया एक अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि केवल 10 से 15 फीसदी अति कुपोषित बच्चों को ही एनआरसी भेजने की जरूरत है। शेष 90 फीसदी बच्चे समुदाय आधारित देखभाल से ही कुपोषण मुक्त हो सकते हैं। इस लिहाज से उन्होंने संवर्द्धन कार्यक्रम के संचालन को महत्वपूर्ण बताया।

जन्म के 06 माह बाद शिशु को ऊपरी आहार देना जरूरी :

कार्यक्रम में मुख्य प्रशिक्षक की भूमिका वुंदा किराडो व पल्लवी कुमारी ने समुदायिक स्तर पर अति कुपोषित बच्चों के विशेष देखभाल से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी। प्रशिक्षकों ने कहा कि कुपोषण से जुड़ी चुनौतियों से निपट कर शिशु मृत्यु दर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके लिये छह माह की उम्र से शिशुओं को ऊपरी आहार का सेवन कराना जरूरी है। नियमित स्तनपान के साथ ऊपरी आहार शिशु के सर्वांगीण विकास के लिये जरूरी है। डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के केशव कुणाल एवं पिरामल स्वास्थ्य के संजय कुमार झा द्वारा प्रशिक्षुओं को संवर्द्धन कार्यक्रम से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी।

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