पटना सिटी, (न्यूज़ क्राइम 24) रानीपुर इलाके में पंजरभोकबा मेला का आयोजन किया जाता है। यह मेला जितना प्राचीन माना जाता है, उतना ही अनोखा व विचित्र भी है।मेले के दिन पहले खप्पर सुबह आता है सती का मंदिर जाता है।जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग इंतजार में रहते है ।इस मेले का आयोजन सत्तुआनी के ठीक दूसरे दिन किया जाता है। लोग अपने पूरे शरीर में त्रिशूल की आकृति के लोहे के पंजरे को घोंप लेते है, इसके बाद पंरपरागत गीतों पर नृत्य करते है।

पूरी रात पंजरभोकबा इन इलाकों में घूम-घूम कर नृत्य करते है। यह मेला इसलिए भी अनोखा है क्योंकि यह मेला रात्रि के दूसरे पहर में शुरु होता है और अंतिम पहर में समाप्त हो जाता है।
आप को बता दे कि आज से चार दशक पूर्व यह मेला पूरे अंचल में होता था।लेकिन अब यह रानीपुर इलाके में ही सिमटकर रह गया है। अब इस मेले का स्वरूप ही शेष रह गया है।
आप को बता दे कि इस मेले को सावित्री-सत्यवान की याद में मनाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि यमराज ने सावित्री को तीन बरदान यहीं दिए थे। यहां यमराज के तीन बरदान से जुड़े तीन शती चौरा भी है। एक किवदंती है कि इस मेले में तांत्रिक अपने तन्त्र-मन्त्र की शक्ति का भी प्रदर्शन किया करते थे।
इस मौके पर यहाँ सावित्री-सत्यवान तथा यमराज की प्रतिमा भी बिठायी जाती है ओर उनकी विधिबत पूजा-अर्चना भी की जाती है। और जगह जगह मेला भी लगता है लोग दूर दूर से इस मेले को सावित्री-सत्यवान की प्रतिमा को देखने आते है और मेले का आनंद लेते है खास कर महिलाएं,बच्चों भी मेले में खूब लुप्त उठते है तरह तरह दुकानें भी लगी रहती है वहीं पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा पूरी रहता है