लखनऊ, (न्यूज़ क्राइम 24) उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी द्वारा बुधवार 28 अगस्त को इंदिरा भवन स्थित अकादमी कार्यालय कक्ष संख्या 444 में ‘‘राम सरूप अणखी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व‘‘ विषयक एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने कहा कि राम सरूप अणखी पंजाबी साहित्य के “थॉमस हार्डी” थे। इस अवसर पर कार्यक्रम कॉर्डिनेटर अरविन्द नारायण मिश्र ने संगोष्ठी में आमंत्रित विद्वानों को अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया।संगोष्ठी में आमंत्रित विद्वान नरेन्द्र सिंह मोंगा ने बताया कि राम सरूप अणखी को पंजाबी साहित्य का “थॉमस हार्डी” कहा जाना चाहिए। अणखी अपने उपन्यासों में, हार्डी से बहुत प्रभावित थे और पंजाबी कथा साहित्य में उनका योगदान, हार्डी से कम नहीं है।
अणखी को साहित्य जगत के बहुमुखी लेखक के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने तीनों विधाओं में लिखा है। पाँच कविता संग्रह प्रकाशित होने के बाद जब अणखी ने कहानी की ओर रुख किया तो उन्होंने 250 से अधिक कहानियाँ लिखीं। उसके बाद जब अणखी की कलम उपन्यासों की ओर चली तो उन्होंने पंद्रह उपन्यास लिखे। उनके उपन्यास न केवल हिंदी और अंग्रेजी में बल्कि गुजराती, मराठी और उर्दू भाषाओं में भी अनुवादित और प्रकाशित हुए हैं। अणखी द्वारा रचित 16 उपन्यास, 12 संपादित कथा साहित्य की पुस्तकें, 6 कविता संग्रह, 3 गद्य पुस्तकें और 2 आत्मकथाएँ, साहित्य की अमूल्य निधि हैं।
इसी संगोष्ठी में अमरीक सिंह दीप ने कहा कि राम सरूप अणखी जमीन से जुड़े हुए लेखक थे जो अपने गांव धौला से आजीवन नाभिनालबद्ध रहे। उनकी वसीयत थी कि मरणोपरांत उनकी अस्थियां उनके गाँव और गाँव के आसपास के गाँव में और नहरों में विसर्जित की जाएँ। डॉ. दलबीर सिंह ने कहा कि अणखी का जन्म दिनाँक 28 अगस्त 1932 को भारतीय पंजाब के बरनाला जिले के धौला गाँव में हुआ था। पटियाला के गवर्नमेंट मोहिंद्रा कॉलेज से शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने खेती के अपने पैतृक पेशे को जारी रखा था। उन्होंने एक सरकारी स्कूल में एक अंग्रेजी शिक्षक के रूप में भी कार्य किया पर अपना लेखन कार्य उन्होंने पंजाबी भाषा में ही किया। दिनाँक 13 फरवरी 2010 को उनका निधन हुआ था।दविंदर पाल सिंह ‘बग्गा‘ के अनुसार राम सरूप अणखी ने पंजाब में साल 1930 से लेकर 1990 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहे वृहद सामाजिक परिवर्तनों को अपने उपन्यासों में प्रभावी रूप में पेश किया है।
श्रीमती रणदीप कौर ने कहा कि रामस्वरूप अनखी जी एक महान कवि होने के साथ-साथ एक वार्ताकार, एक संपादक, एक अनुवादक और एक यथार्थवादी नोवेलकार भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में ज्यादातर किसानों की दुर्दशा और आर्थिक दुर्गति को पेश किया है। अपनी रचनाओं में स्त्री जीवन की भी चुनौतियों का बहुत सुंदर चित्रण किया है। उन्हें भारत की राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा उनके उपन्यास “कोठे खड़क सिंह” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार 1987 में दिया गया था। संगोष्ठी में त्रिलोक सिंह, अजीत सिंह, प्रकाश गोधवानी, अंजू सिंह, महेन्द्र प्रताप वर्मा और रवि यादव सहित अन्य विशिष्ट जन उपस्थित रहे।