बिहार

शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में धूमधाम से मनाई गई बकरीद

फुलवारी शरीफ, अजीत त्याग व कुर्बानी का पवित्र त्योहार ईद उल अजहा उर्फ बकरीद को लेकर पटना के शहरी एवं ग्रामीण इलाके की मस्जिदों में सोमवार की सुबह से ही नमाजियों की खासी भीड़ देखी गई.बकरीद के मौके पर लोगों ने सुबह से ही मस्जिदों में नमाज अदा की और एक दूसरे के गले मिलकर बकरीद की मुबारकबाद दी बकरीद पर्व को लेकर शहरी और ग्रामीण इलाकों में हर चौक चौराहे पर प्रशासन के द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे .

फुलवारी शरीफ के खानकाह, ईसापुर, नया टोला, नोहसा, हारून नगर, शाही संगी मस्जिद, खलीलपुरा सबजपुरा, मिल्लत कॉलोनी अपना घराना काजी नगर कॉलोनी कर्बला के मस्जिदों में सुबह से नमाजियों की भीड़ लगी रही.शहर में एएसपी बिक्रम सेहाग बीडीओ मुकेश कुमार थानाध्यक्ष फुलवारी शरीफ सफीर आलम बेउर थानाध्यक्ष सुनील कुमार जानीपुर थानाध्यक्ष बलबीर कुमार सिंह सम्पत चक गोपाल पुर थाना अध्यक्ष जावेद अहमद खान, गौरीचक थाना अध्यक्ष अमित कुमार रामकृष्ण नगर थाना अध्यक्ष कृष्ण चंद्र भारती फुलवारी शरीफ सीओ सुनील कुमार लगातार गश्त करते देखे गए.

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प्रसिद्ध खानकाह मुजीबिया के सचिव मौलाना मिनहाजुद्दीन मुजिबी ने लोगों को बकरीद की मुबारकबाद दी. उन्होंने लोगों से कहा कि बकरीद एक कुर्बानी और त्याग की पर्व है इस पर्व को सभी लोग आपसी भाईचारा और सौहार्द पूर्ण वातावरण में मनाए.इमारत शरिया के कार्यवाहक नाजिम मौलाना मोहम्मद शिबली अल कासमी ने बताया कि कुर्बानी एक आलमगीर इबादत है। जो हर मजहब, हर कौम में कुर्बानी को ईबादत करार दिया है। दुसरे मजहब की तरह इस्लाम में कुर्बानी को इबादत का एक अहम अंग माना गया है। हजरत इब्राहिम अलैहस्लाम के जमाने से लेकर आज तक कुर्बानी का रस्म चली आ रही है। अल्लाह ताला का इरशाद है कि हमने हर उम्मत के लिए कुर्बानी मुकर्रर की।

इस्लामिक कैलेण्डर का अंतिम महिना ईदुलअजहा (बकरीद) है। इदुलअजहा के माने कुर्बानी की ईद है यानि कुर्बानी की खुशी है। यह ईद दशवीं जिलहिज्जा को मनायी जाती है।ये वह दिन है जिसमें हजरत इब्राहिमईस्लाम ने अल्लाह ताला का हुक्म व इशारा पाकर अपने लख्तेजिगर नुर-ए-नजर दिल का टुकड़ा हजरत इस्माईल अलैहईस्लाम को अल्लाह की रजामंदी के लिए कुर्बानी के लिए पेश कर दिये। अल्लाह के हुजुर में पेश करके अपनी सच्चाई वफादारी और सौ फिसदी अल्लाह की हुक्म का सबुत दिया था और अल्लाह ताला ने कुर्बानी की इस इम्तेहान में उन्हें कामयाब करार दिया और हजरत इस्माइल अलैह इस्लाम की जगह एक जानवर की कुर्बानी कबुल फरमायी थी।

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