धनबाद(न्यूज़ क्राइम 24): टुंडी हुल जोहार सन 1855 में, अंग्रेजों के जुल्म, शोषण और अत्याचार के विरुद्ध बिगुल फूंक कर, “हमारी माटी छोड़ो” का नारा देते हुए संघर्ष व बलिदान की गाथा लिखने वाले अमर शहीदों सिदो-कान्हो, चांद भैरव व फूलो-झानो को याद करने का आज खास दिन है। पाठशाला की छठी कक्षा की छात्रा अंकिता मुर्मू ने आयोजित भाषण प्रतियोगिता में कहा कि संथाल विद्रोह का मुख्य कारण 1773 ई. में स्थायी भूमि बन्दोवस्त व्यवस्था लागू हो जाने के कारण हमारी भूमि छीनकर जमींदारों को दे दी गयी जिससे जमीनदारी व्यवस्था तथा साहूकारों एवं महाजनों के द्वारा शोषण एवं अत्याचार निर्बाध रूप से अत्यधिक बढ़ गया। संथाल की दुर्दशा के लिए ब्रिटिश प्रशासन मुख्य रूप से उत्तरदायीं है और जिसके लिए ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह व आदर्श संसार का निर्माण करना स्वाभाविक था। 1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी। इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को हुई, जो धीरे-धीरे सम्पूर्ण देश के विभिन्न हिस्सों और स्थानों में फैल गई। हूल क्रान्ति दिवस प्रत्येक वर्ष 30 जून को मनाया जाता है। 30 जून, 1855 को 400 गांवों के करीब 50 हजार आदिवासी भोगनाडीह गांव पहुंचे और इस हुल क्रंति का यह आंदोलन ऐलान के साथ शुरू हो गया हजारों आदिवासियों ने सिद्धो-कान्हू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका तथा इसी सभा में यह घोषणा कर दी गई कि वे अब कोई भी राजस्व का मालगुजारी ब्रिटिश शासन को नहीं देंगे । “हूल दिवस” के अवसर पर अमर शहीद सिदो-कान्हो, चांद-भैरव व फूलो-झानो सहित सभी शहीदों को हूल जोहार।भाषण के बाद पाठशाला के आदिवासी बच्चों ने संथाली में क्रांतिकारी गीत भी गाया l पाठशाला के संस्थापक देव कुमार वर्मा ने कहा कि हमें हमारी संस्कृति और हमारे पूर्वजों का इतिहास याद रखने के लिए बच्चों को बीच इस तरह का आयोजन हुआ