फुलवारी शरीफ, (न्यूज़ क्राइम 24) वक़्फ़ संशोधन कानून को लेकर इमारत-ए-शरीया बिहार, झारखंड, ओडिशा और बंगाल के मुख्यालय में शनिवार को एक महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ़्रेंस आयोजित की गई. इस दौरान अमीर-ए-शरीअत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी ने संशोधन कानून को मुसलमानों की धार्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक पहचान पर हमला बताते हुए इसे संविधान के खिलाफ साज़िश करार दिया.
उन्होंने कहा कि यह महज एक कानून नहीं, बल्कि वक़्फ़ की जड़ों पर कुल्हाड़ी चलाने की कोशिश है. अगर वक्त रहते पूरे देश के मुसलमान एकजुट नहीं हुए, तो मस्जिदें, कब्रिस्तान, मदरसे, स्कूल और वक़्फ़ ज़मीनों पर खड़े तमाम संस्थान इतिहास बन जाएंगे.
प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अमीर-ए-शरीअत ने साफ कहा कि इस कानून में चतुराई से वक़्फ़ की परिभाषा बदली गई है. चैरिटेबल ट्रस्ट को वक़्फ़ से अलग करके 3900 से अधिक मदरसों और संस्थानों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया गया है.
उन्होंने सवाल उठाया कि जब वक़्फ़ करने वाला मुसलमान है, तो “मुसलमान दिखने” जैसी शर्त कानून में क्यों डाली गई है?. क्या यह संदेह और भेदभाव की राजनीति नहीं है?.
सरकार द्वारा वक़्फ़ संपत्तियों पर मनमाना टैक्स लगाने के प्रावधान को भी उन्होंने समुदाय के जख्मों पर नमक बताया और कहा कि “सरकार को यह अधिकार किसने दिया कि वह हमारी धार्मिक सम्पत्तियों पर बंधनहीन टैक्स थोपे?”.
उन्होंने इस्लामी परंपराओं को कानून के ज़रिये खारिज किए जाने को शरीअत का सीधा अपमान करार दिया.
उन्होंने कहा कि इमारत-ए-शरीया इस अन्याय के खिलाफ संविधानिक तरीके से आंदोलन चलाएगी और अंतिम सांस तक वक़्फ़ की हिफाज़त की लड़ाई लड़ी जाएगी.
उन्होंने मुस्लिम समाज से जागरूकता की अपील करते हुए कहा — “यह वक्त ग़फ़लत का नहीं, बल्कि एकजुट होकर आवाज़ बुलंद करने का है, वरना हमारी ज़मीन और पहचान सिर्फ किताबों में रह जाएगी.