बिहार

एईएस व जेई के संभावित खतरों से निपटने की तैयारियों में जुटा विभाग

अररिया, रंजीत ठाकुर जिला स्वास्थ्य विभाग एईएस व जेई के संभावित खतरों से निपटने की तैयारियों में जुट गया है। इसी कड़ी में मंगलवार को सिविल सर्जन डॉ केके कश्यप की अध्यक्षता में एईएस व जेई यानी चमकी बुखार व मस्तिष्क ज्वर से संबंधित एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन जिला स्वास्थ्य समिति सभागार में किया गया। कार्यक्रम में जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ अजय कुमार सिंह, डीआईओ डॉ मोईज, आईडीएसपी के प्रभारी डॉ श्रीकांत, वीडीसीओ राम कुमार, सभी प्रखंडों के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, बीएचएम, बीसीएम सहित संबंधित अन्य स्वास्थ्य अधिकारी मौजूद थे।

एईएस व जेई संबंधी मामलों के प्रति रहें सतर्क

प्रशिक्षण कार्यक्रम में सिविल सर्जन डॉ केके कश्यप ने कहा कि चमकी बुखार व मस्तिष्क ज्वर संबंधी मामलों का कुशल प्रबंधन जरूरी है। प्रारंभिक अवस्था में रोग की पहचान व इलाज से जान माल की क्षति को काफी हद तक कम किया जा सकता है। लिहाजा इसे लेकर स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मियों को विशेष तौर पर सतर्क रहने की जरूरत है। सिविल सर्जन ने कहा कि अप्रैल से लेकर मई का महीना रोग के प्रसार के लिहाज से बेहद संवेदनशील माना जाता है। ये रोग खासतौर पर 01 से 15 साल तक के बच्चों को प्रभावित करता है। कुपोषित बच्चे, वैसे बच्चे जो बिना भरपेट भोजन किये रात में सो जाते हों, खाली पेट कड़ी धूप में लंबे समय तक खेलने, कच्चे व अधपके लीची का सेवन करने वाले बच्चों को ये रोग आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। उन्होंने कहा कि चमकी बुखार व मस्तिष्क ज्वर संबंधी मामलों की रोकथाम व कुशल प्रबंधन के साथ-साथ साथ-साथ संबंधित मामलों को प्रतिवेदित करना जरूरी है। इसके लिये स्पष्ट दृष्टिकोण विकसित करना प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य है।

ससमय रोग का कुशल प्रबंधन व उपचार जरूरी

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जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ अजय कुमार सिंह ने स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मियों को प्रशिक्षण के दौरान रोग से जुड़े सभी तकनीकी पहलुओं से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि एईएस व जेई एक प्राणघातक बीमारी है। सही समय पर रोग का उचित प्रबंधन नहीं होने से बीमार बच्चों की मौत भी हो सकती है। स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मियों को रोग प्रबंधन व उपचार से संबंधित विस्तृत जानकारी देते उन्होंने बताया कि सिर में दर्द, तेज बुखार, अर्ध चेतना, मरीज में पहचानने कि क्षमता नहीं होना, भ्रम कि स्थिति में होना, बेहोशी, शरीर में चमकी, हाथ व पांव में थरथराहट, रोग ग्रस्त बच्चों का शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड़ना एईएस व जेई के सामान्य लक्षण हैं। इन लक्षणों के प्रकट होने से पहले बुखार हो भी सकता है व नहीं भी, ऐसे मामले सामने आने पर रोग ग्रस्त बच्चों का उचित उपचार जरूरी है। लिहाजा हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से लेकर सभी प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में रोग के उचित प्रबंधन के उद्देश्य से एईएस इमरजेंसी ड्रग किट की उपलब्धता जरूरी है। डीवीबीडीसीओ ने कहा कि रोग से संबंधित गंभीर मामले सामने आने पर जरूरी उपचार के साथ उन्हें तत्काल एंबुलेंस उपलब्ध कराते हुए उच्च चिकित्सा संस्थान रेफर किया जाना जरूरी है। ताकि रोगी का समुचित इलाज संभव हो सके।

कुशल प्रबंधन से सीमित हो सकता है रोग का प्रभाव

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी सह एसीएमओ डॉ मोईज ने कहा कि जिला स्वास्थ्य विभाग एईएस व जेई के संभावित खतरों के प्रति पूरी तरह सतर्क है। समय पर रोग के कुशल प्रबंधन से इस बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सकताा है। लिहाजा सभी संस्थानों में एईएस इमरजेंसी हेल्थ किट व रोग संबंधी गंभीर मामलों को तुरंत उच्च स्वास्थ्य संस्थानों में रेफर किया जाना जरूरी है। सभी स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारियों को संबंधित क्षेत्र की सीएचओ, एएनएम, आशा कार्यकर्ता व पारा मेडिकल स्टॉफ को इस संबंध में जरूरी प्रशिक्षण यथाशीघ्र उपलब्ध कराने के लिये उन्होंने निर्देशित किया।

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