न्यूज़ क्राइम 24, अधिवक्ता राहुल रंजन : सर्वोच्च न्यायालय ने एक दंपती के तलाक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की है कि अगर पत्नी बिना किसी ठोस कारण के अपने पति पर उसके परिवार वालों से अलग रहने का दबाव डालती है, तो यह हरकत भी प्रताड़ना के दायरे में आएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में पत्नी ने आत्महत्या की कोशिश की और धमकियां दीं, साथ ही पति पर इस बात के लिए दबाव बनाया कि वह अपने परिवार को छोड़ दे, जबकि पति के माता-पिता उसी पर आर्थिक तौर पर निर्भर थे।
बताया गया कि महिला ने पति पर अफेयर का झूठा आरोप भी लगाया। इन तमाम हरकतों को कोर्ट ने क्रूरता माना और इस आधार पर पति के पक्ष में तलाक की मंजूरी दे दी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए. आर. दवे और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि बेटे द्वारा माता-पिता की देखभाल करना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला चाहती थी कि उसका पति अपने परिवार से अलग हो जाए, जबकि पति की आमदनी पर उसके माता-पिता भी निर्भर थे।
कहा गया कि भारतीय संस्कृति में ऐसा चलन नहीं है कि कोई लड़का शादी के बाद पत्नी के कहने पर अपने परिवार से अलग हो जाए। वह भी तब, जब उसकी ही आमदनी पर माता-पिता व परिवार भी निर्भर हो। जिक्र किया गया कि माता-पिता अपने बेटे को पढ़ाने से लेकर उसकी परवरिश करते हैं, ऐसे में बेटे की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि वह माता-पिता की हर तरह से देखभाल करे।
अलग रहने का दबाव बेटा कैसे बर्दाश्त करे?
दलील दी गई कि अभी भी भारत में लोग उस पश्चिमी सभ्यता से सहमत नहीं हैं जहां बेटा बालिग होने और शादी होने के बाद अलग रहने लगता है। साधारण स्थिति में पत्नी से उम्मीद की जाती है कि वह परिवार में रहे और उसका अभिन्न अंग बने।
बिना किसी ठोस कारण के वह अलग रहने के लिए दबाव नहीं डाल सकती। मौजूदा मामले में महिला ने अलग रहने का दबाव इसलिए डाला क्योंकि वह पति की सैलरी का पूरा इस्तेमाल कर सके, जबकि उसी आय पर पति के मां-पिता भी निर्भर थे। कहा गया कि पत्नी का यह तर्क न्यायसंगत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटे द्वारा माता-पिता की परवरिश भारतीय संस्कृति में शामिल है। अदालत ने कहा कि हिंदू समाज की मान्यताओं के तहत बेटे का दायित्व है कि वह माता-पिता की बेहतर देखरेख करे। ऐसे में कोई भी बेटा यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी पत्नी बूढ़े माता-पिता से अलग रहने का दबाव डाले। इस मामले में पत्नी ने अलग रहने के लिए जो हरकत की है, वह क्रूरता के दायरे में आती है।
आत्महत्या का प्रयास या धमकी भी क्रूरता
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि महिला ने आत्महत्या का प्रयास किया, जिसके बाद पति ने उसे बचाया। महिला को कुछ होने की स्थिति में कोई भी पति कानूनी उलझनों में फंसेगा और उसकी जीवनभर की शांति खत्म हो जाएगी। कानूनी उलझनों के कारण उसे मानसिक प्रताड़ना झेलनी होगी। सिर्फ इसी आधार पर भी तलाक की मंजूरी मिल सकती है।
साथ ही महिला ने अपने पति पर विवाहेतर सम्बंध रखने का आरोप लगाया, जबकि सारे आरोप गलत साबित हुए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आत्महत्या का प्रयास और उसकी धमकी और अन्य आरोप, क्रूरता के दायरे में आते हैं।
निचली अदालत ने पति के पक्ष में फैसला दिया था जिसे पत्नी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को पलट दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए निचली अदालत के आदेश को बहाल कर दिया।