फुलवारी शरीफ, अजित : रोजा एक ऐसी सिफत (गुण) और खूबी का नाम है जो बहुत सारी भलाइयों को एक जगह जमा करता है. रमजान का पाक व मुकद्दस महीना आने वाला है और लोग इसकी तैयारी में लगे हुए हैं. नेकिया कमाने का या महीना आ रहा है आप लोग ज्यादा से ज्यादा गरीबों की मदद करके अल्लाह के करीब होने का फायदा उठायें. रमजान के महीने में जो ज्यादा गरीबों की सेवा करता है उन्हें रोजा इफ्तार का व्यवस्था करता है अल्लाह सबसे ज्यादा वैसे बंदे से खुश रहते हैं और रोजा रखने से भी ज्यादा नेकियों की बरसात वैसे बंदों पर ऊपर वाला करता है.
यह बात मौलाना शेख ओसामा इकबाल सलफी ने जुमा 21 फरवरी को हारून नगर सेक्टर 1 की मस्जिद में अपने खुत्बे में कही.
उन्होंने उन भलाइयों का जिक्र करते हुए कहा कि रोजा ईमान और तकवा (परहेजगारी), फाकाकशी का एहसास, दूसरों की मदद का जज्बा, अपनी ख्वाहिशों पर कंट्रोल और मुकम्मल फरममांबरदारी का नमूना है.
उन्होंने अपने खुत्बे की शुरुआत में एक शेर पढ़ा:
जब अल्लाह बंदों को जबान देता है तो पढ़ने को कुरान देता है इरादा हो गुनहगारों को बख्शने का तो फिर माह-ए-रमजान देता है
मौलाना ओसामा ने कहा कि रोजा के लिए सबसे जरूरी यह है कि यह खालिस नीयत के साथ अल्लाह के लिए रखा जाए.उन्होंने कहा कि रोजा इस्लाम की अहम इबादतों में एक अजीमुश्शान इबादत है. उन्होंने कहा कि रोजा को कुरान में कंपलसरी (फर्ज) बताया गया है यानी इससे इनकार नहीं किया जा सकता.
मौलाना ने कहा कि रोजा एक ऐसी चीज नहीं है जिससे हमें परेशान होने की जरूरत पड़े.उन्होंने कहा कि रोजा अल्लाह की तरफ से रहमत है. उन्होंने मेडिकल साइंस के हवाले से बताया कि रोजा रखने से बहुत सारी बीमारियों का इलाज होता है. उन्होंने कहा कि हम जो 11 महीना तक खाने पीने में बेएहतियाती बरतते हैं और जिसका असर हमारी किडनी और लीवर पर पड़ता है, उन सभी को सुधारने का काम रोजा करता है.
उन्होंने कुरान और हदीस के हवाले से बताया कि जो लोग सख्त बीमार हैं, सफर की हालत में हों या डॉक्टर ने कह दिया कि आप रोजा नहीं रख सकते तो ऐसे लोगों को बाद में रोजे का फर्ज अदा करना चाहिए. इसके अलावा महिलाओं को भी विशेष परिस्थिति में बाद में रोजा रखने का कहा गया है.
उन्होंने बताया कि हजरत मोहम्मद ने रमजान के महीने को एक अजीम (महान) महीना और बेहद मुबारक महीना बताया है. अल्लाह ताला इसी महीने में अपने फरमांबरदार बंदों के गुनाहों को माफ करता है. इसी महीने में एक ऐसी रात है जिसमें की गई इबादत हजार महीनों की इबादत से बेहतर है. मौलाना ने कहा कि हमें इस बात को समझने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि रोजा बुराइयों से बचने की ढाल है. हजरत मोहम्मद की हिदायतों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि रोजा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि इस दौरान इंसान को हर तरह की बुराई से बचना चाहिए, उसे अच्छे बोल बोलना चाहिए और अगर कोई उससे झगड़ा करे तो उसे कह देना चाहिए कि मैं रोजे से हूं.उन्होंने बताया कि रोजेदार के लिए दो खुशियों के मौके हैं. एक तो इफ्तार के वक्त और एक तब जब वह अल्लाह से मिलेगा और इस रोजे की वजह से मिलने सब वाले सवाब से खुश हो जाएगा.