कैनाइन ग्रूमिंग और स्पा पर कार्यशाला का आयोजन 

फुलवारीशरीफ(अजित यादव): बिहार पशुचिकित्सा महाविद्यालय में पेट्स के ग्रूमिंग और स्पा पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला में बिहार वेटरनरी कॉलेज के मेडिसिन विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. वी.के.सिन्हा विशेषज्ञ के तौर पर मौजूद थे। कार्यशाला में विशेषज्ञ द्वारा पेट्स के साफ़-सफाई, सजाने, सँवारने की विधि और उसके महत्व पर प्रकाश डाला गया। डॉ. वी.के.सिन्हा ने कहा कि आज हर कोई ग्रूम होना चाहता है और समय के हिसाब से ग्रूमिंग होना चाहिए, जिस प्रकार इंसान में ग्रूमिंग का एक बड़ा महत्व है ठीक उसी प्रकार कुत्ते, बिल्लियों और आपके अन्य पेट्स के लिए भी सजना-संवारना और सौंदर्य की जरुरत हैं। ग्रूमिंग सिर्फ बाहरी सौंदर्य के लिए प्रभावी नहीं है बल्कि ये पेट्स के हेल्थ के लिए भी बहुत लाभदायक है। उन्होंने आगे कहा की पेट्स अब हर घर की शोभा है और मनुष्य का एक अच्छा मित्र बन गया है, आजकल हर घर में कुत्ते और बिल्ली परिवार के सदस्य के जैसे है इसलिए भी ग्रूमिंग बहुत जरुरी है ताकि वो हाइजीनिक रहे। ग्रूमिंग का स्वास्थ्य के साथ संबंध पर उन्होंने कहा की कोई भी बीमारी शरीर के बाहरी हिस्से से ही अंदर प्रवेश करता है, कुत्ते की बात करें तो उसको नहलाने, ब्रश करने से ही उनके त्वचे में जमे डेड टिश्यू और टीक या अन्य परजीवी बाहर निकल जाते हैं, और अगर ये ग्रूमिंग नहीं किया जाये तो बैक्टीरिया, पैरासाइट और अन्य त्वचा की बीमारियां पेट्स के बाहरी हिस्से में घर कर ये उनका स्वास्थ्य भी बिगाड़ सकते है साथ ही मनुष्यों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकते हैं। ग्रूमिंग से पेट्स के शारीरिक गुणों को बढ़ाया जा सकता है जिसमे हेयर कटिंग, हेयर वाशिंग, हेयर ट्रीटमेंट, टीक और पैरासाइट ट्रीटमेंट, कंडीशनिंग, नेल ट्रीमिंग, टो एंड फ़ीट वाशिंग शामिल है। डॉ. सिन्हा ने ग्रूमिंग और स्पा में इस्तेमाल होने वाले ब्रश और टूल के बारे में भी जानकारी दी.
इस अवसर पर बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह ने कहा कि महाविद्यालय द्वारा ये बहुत ही अनूठा और नवीनतम प्रयोग है जो सराहनीय है। उन्होंने आगे कहा की ये हमारा प्रयास रहता है की हम छात्रों को उपचार की कला और विज्ञान में व्यापक ज्ञान दे सके ताकि वो आने वाले समय में समाज को अपने ज्ञान और उपचार की कुशलता से संतुष्ट कर सके। कैनाइन ग्रूमिंग और स्पा पर बोलते हुए उन्होंने कहा की ये एक ऐसा विषय है जो औपचारिक पाठ्यक्रम में शामिल नहीं है, लेकिन हमें नई चीजों को करने में संकोच नहीं करना चाहिए और हमें लगता है कि आने वाले दिनों में इसे पशु चिकित्सा विज्ञान के पाठ्यक्रम और अध्ययनों में भी शामिल किया जाएगा.
बिहार वेटरनरी कॉलेज के डीन डॉ. जे.के.प्रसाद ने कहा की कैनाइन ग्रूमिंग में उद्यम की व्यापक संभावनाएं हैं, ये सीधे तौर पर पशु के स्वास्थ्य से जुड़ा है। छात्र इस क्षेत्र में अपना करियर बना सकते है और खुद का उद्यम स्थापित कर सकते हैं। कार्यक्रम के शुरुआत में कार्यशाला के संयोजक डॉ. पल्लव शेखर और सह-संयोजक डॉ. विवेक कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ देकर किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान डॉ. रविंद्र कुमार, निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. एके.ठाकुर, डॉ. अर्चना, डॉ. ज्ञानदेव सिंह, डॉ. अनिल, डॉ. अंकेश, डॉ. अविनाश गौतम, डॉ. भावना, डॉ. सोनम, डॉ. आलोक, जनसंपर्क पदाधिकारी सत्या कुमार सहित महाविद्यालय के स्टूडेंट्स उपस्थित थे।

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