जमुई(मो० अंजुम आलम): जिलेभर में रविवार को मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा हरसोउल्लास के साथ शब-ए- बरात पर्व मनाया गया। इस रात को विभिन्न मस्जिदों व कब्रिस्तानो को विभिन्न प्रकार के लाइट से सजाया गया। वहीं इबादत के लिए आए लोगों से पूरा मस्जिद गुलज़ार रहा। वहीं पर्व के अवसर पर विभिन्न मस्जिदों में रविवार की रात से सोमवार की अहले सुबह तक लोगों ने इबादतें की। रातभर नामज़, कुरआन की तिलावत व इबादतों के साथ-साथ दुआओं का दौर चलता रहा। इस दौरान अमन, चैन व शांति के लिए लोगों दुआएं मांगी साथ ही गुनाहों से तौबा किया। सोमवार की अहले सुबह लोग बारी-बारी से कब्रिस्तान पहुंचे। जहां अपने रिश्तेदार व दोस्तों की कब्रों पर जाकर उनके लिए दुआएं मांगी। इसके अलावा बच्चों द्वारा खूब आतिशबाजी भी की गई।
आपको बता दें कि 15 दिनों के बाद इबादत का बरकत वाला महीना रमज़ानुल मुबारक शुरू होने वाला है। जिसकी तैयारी में लोग शब-ए-बारात के बाद से ही लग जाते हैं। 14 या 15 अप्रैल से रमजानुल मुबारक महीने के पहले रोजे की शुरुआत होगी.
इस रात में इबादत से गुनाह होती है माफ-
फारसी और अरबी शब्द से मिलकर बना शब-ए-बरात का शाब्दिक अर्थ है छुटकारा,मासूमियत यानि गुनाहों से तौबा करने की रात। इस रात की अहमियत इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शाबान महीने की 14वीं की शाम से 15वीं की सुबह तक है। मुस्लिम समुदाय के लिए शब-ए-बारात को इबादत और दुआओं का भी रात कहा जाता है। लोग अपने किए गुनाहों से भी तौबा करते हैं। शब-ए-बारात के मौके पर कई मुसलमान दो दिनों का रोजा भी रखते हैं। हालांकि उलेमाओं की माने तो शब-ए-बरात को लेकर और इस रात को मनाने की परंपरा के बारे में कुरआन में ज्यादा कुछ नहीं लिखा है। इस त्योहार का कुरआन में स्पष्ट रूप से उल्लेख भी नहीं किया गया है। अगर कुरआन में इसका जिक्र होता तो शब-ए-बारात फ़ारसी और अरबी जुबान से मिलकर नहीं रहती बल्कि सिर्फ अरबी जुबान में होती। ऐसा मान्यता है कि शब-ए-बारात में इबादत करने वाले सभी लोगों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। इसलिए लोग पूरी रात जागकर शब-ए-बारात में अल्लाह को याद करते हैं और अपने किए गए गुनाहों की माफी मांगते हैं। कहा जाता है कि अल्लाह इस रात गुनाहों को माफ कर देते हैं और जन्नत के दरवाजे खोल देते हैं।