भरगामा में जोर-शोर से चल रही छठ पर्व की तैयारियां, सूप, दउरा, नारियल से पटा बाजार

अररिया, रंजीत ठाकुर भरगामा प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में दीपावली पर्व संपन्न होने के बाद लोग अब छठ पूजा की तैयारी में जोर-शोर से जुट गए हैं. छठ पूजा का यह चार दिवसीय अनुष्ठान 5 नवंबर से प्रारंभ हो जायेगा। जहां एक ओर दुकानदार छठ पूजा की सामग्री की बिक्री के लिए इसकी खरीदारी कर स्टाक करने में लगे हुए हैं,वहीं दूसरी ओर सूप,दउरा बनाने वाले कारीगरों में सूप,दउरा बनाने की होड़ मची हुई है। बता दें कि कार्तिक मास की षष्ठी तिथि से छठ पर्व की शुरुआत हो जाती है और इस बार यह शुभ तिथि 5 नवंबर को है। छठ पर्व का पहला दिन नहाय खाय के साथ शुरू होता है,दूसरे दिन खरना,तीसरे दिन संघ्या अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देते हीं समापन हो जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखा जाता है,जो बेहद कठिन होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा-अर्चना और अर्घ्य देने से सुख-शांति,समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। बताते चलें कि सोमवार को भरगामा, खजुरी,भटगामा,सिमरबनी,महथावा बाजारों में सूप बिक्री स्थलों पर छठ व्रतियों की भीड़ दिखाई पड़ने से कारीगरों की उत्साह परवान पर नजर आया।

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कारीगर प्रदीप मल्लिक,अनिल मल्लिक,बबलू मल्लिक, चंदेश्वरी मल्लिक,मनोज मल्लिक,विनोद मल्लिक,सुनील मल्लिक,प्रमिला मल्लिक,मीना मल्लिक,गुंजा मल्लिक आदि ने बताया कि छठव्रती महिलाएं पूजा के मद्देनजर भरपूर मात्रा में सूप खरीद रही है। एक सूप 40 रुपये में बिक रह रहे हैं। इसी बिक्री से हमलोगों का पेट भरता है। यही चार-पांच दिनों तक जी तोड़ परिश्रम करना पड़ता है। मालूम हो कि छठ पूजा लोक आस्था का महापर्व माना जाता है। इन्हीं समुदाय के बने सूप में पूजा सामग्री रख कर षष्ठी पूजा के लिए सूप सजाया जाता है। हालांकि सूप बनाने के क्रम में इन समुदायों की पीड़ा भी उभरकर सामने आयी। इन लोगों ने बताया कि छठ श्रद्धा और अगाध आस्था का पर्व है इस पर्व में हमलोगों के द्वारा बनाए गए सूप में छठ पूजा से जुड़ी सामग्री को रखकर भगवान सूर्यदेव की आराधना की जाती है,लेकिन फिर भी हमलोगों के साथ समाज में अच्छा व्यवहार नहीं होता है। दरअसल मूल रूप से देखा जाए तो इस पूजा को संतान के लिए किया जाता है. इसलिए छठ में बांस के सूप का प्रयोग किया जाता है जो इस बात का प्रतीक होता है कि जैसे-जैसे बांस तेजी से बढ़ती है वैसे-वैसे संतान की भी प्रगति तेजी से हो। यही वजह है कि छठ में बांस के सूप का इस्तेमाल किया जाता है और इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

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