अररिया(रंजीत ठाकुर): स्तनपान शिशुओं के मूलभूत पोषण की जरूरतों को पूरा करता है। नवजात को गंभीर बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने के लिहाज से भी स्तनपान को महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो अगर बच्चा जन्म के उपरांत मां का दूध पीने में किसी तरह की आनाकानी करता तो यह बच्चे के रोगग्रस्त होने की ओर इशारा करता है। इसे गंभीरता से लेते हुए विशेष चिकित्सकों के परामर्श पर बच्चे का इलाज जरूरी हो जाता है।
शिशुओं के सर्वांगीण विकास के स्तनपान जरूरी :
जानकारी देते हुए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ मोईज बताते हैं कि स्तनपान से नवजात में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता का विकास होता है। आधुनिक परिधान व बदलते परिवेश में स्तनपान के महत्व को दरकिनार किया जा रहा है जो बेहद चिंताजनक है। उन्होंने बताया कि शिशुओं के सर्वांगीण विकास के लिये स्तनपान जरूरी है। खासकर जन्म के एक घंटे के अंदर मां का गाढ़ा पीला दूध बच्चों के लिये अमृत के सामान है। नवजात को अगर नियमित अंतराल पर स्तनपान कराया जा रहा तो ऊपर से पानी पिलाने की जरूरत भी नहीं होती है। स्तनपान से मां व बच्चे के बीच भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता है। जो नवजात में सुरक्षा का भाव विकसित करने के लिये भी जरूरी है।
छह माह तक के बच्चों के लिये मां का दूध सर्वात्तम आहार :
सिविल सर्जन डॉ विधानचंद्र सिंह ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि छह माह तक शिशुओं को केवल स्तनपान कराये जाने से दस्त के मामलों में 11 प्रतिशत व निमोनिया के मामलों में 15 प्रतिशत तक कमी लायी जा सकती है। उन्होंने बताया कि स्तनपान के महत्व को समझते हुए प्रसव सुविधा युक्त जिले के सभी अस्पतालों के प्रसव वार्ड में ही अलग से ब्रेस्ट फीडिंग जोन संचालित किया जा रहा है। इतना ही नहीं प्रसव वार्ड के चिकित्सक व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा भी माताओं को स्तनपान के महत्व के प्रति जागरूक व प्रोत्साहित किया जाता है। इतना ही नहीं स्तनपान की विशेष तकनीक की जानकारी सभी माताओं को दी जाती है। उन्होंने बताया कि बच्चे को एक नियमित समयांतराल पर अधिक से अधिक बार स्तनपान कराया जाना चाहिये। शुरुआत में दूध कम होने पर अक्सर माताएं इस भ्रम में होती हैं कि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में बाहरी दूध का सहारा लिया जाता जो बिल्कूल गलत है। मां का दूध भरपूर पोषण युक्त होता है। इसलिये छह माह तक बच्चे को बाहरी आहार के रूप में अलग से कुछ भी देने की जरूरत नहीं होती।