प्रसव संबंधी जटिलता व एनीमिया प्रबंधन के लिहाज से प्रसव पूर्व चार जांच जरूरी

अररिया(रंजीत ठाकुर): मां बनना किसी भी महिला के लिये एक सुखद एहसास है। इस सुखद एहसास को भरपूर आनंद लेना हर महिला का अधिकार है। लेकिन नौ माह लंबे इस सफर में से महिला व गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य व पोषण संबंधी कुछ जटिलताएं भी हैं। जिसके प्रति हर महिला का सचेत व गंभीर होना जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई जटिल रोगों का खतरा होता है। इसके लिये सभी गर्भवती महिलाओं को अपने स्वास्थ्य व पोषण पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। ताकि इस खुबसूरत सफर का सुखद अंत संभव हो सके। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं का एनीमिया का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा को विभिन्न प्रकार के संक्रमण से मां व बच्चे का बचाव भी महत्वपूर्ण है। इसके लिये नियमित अंतराल पर महिलाओं को प्रसव पूर्व जांच की सलाह दी जाती है। इसे एएनसी यानि एंटी नेटल केयर के नाम से जाना जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक पूरे गर्भावस्था के दौरान नियमित समयांतराल पर गर्भवती महिलाओं के लिये चार जांच जरूरी है।

एएनसी से आसान होता हाई रिस्क प्रिगनेंसी का पता लगाना :

सिविल सर्जन डॉ विधानचंद्र सिंह के मुताबिक मां व बच्चे कितने स्वस्थ्य हैं। इसका पता लगाने के लिये प्रसव पूर्व चार जांच जरूरी है। इससे गर्भावस्था के दौरान होने वाले जोखिमों की पहचान, संबंधित अन्य रोगों की पहचान व उपचार आसान हो जाता है। जांच के जरिये हाई रिस्क प्रेग्नेंसी यानि एचआरपी को चिह्नित करते हुए उसकी उचित देखभाल से सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित कराया जा सकता है। सिविल सर्जन ने बताया कि एएनसी के क्रम में मुख्यतः खून, रक्तचाप, एचआईवी की जांच की जाती है। भ्रूण की सही स्थिति का पता लगाने, एचआईवी जैसे गंभीर बीमारी से बच्चे का बचाव व एनीमिक होने पर प्रसूता का सही उपचार के लिये प्रसव पूर्व चार एएनसी जांच जरूरी है। गर्भधारण के तुरंत बाद या गर्भावस्था के पहले तीन महीने के अंदर पहला एएनसी जांच जरूरी है। दूसरी जांच गर्भावस्था के चौथे या छठे महीने में, तीसरी जांच सातवें या आठवें महीने में व चौथी जांच गर्भधारण के नौवें महीने में जरूर कराना चाहिये।

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प्रथम तिमाही में महज 41.6 फीसदी का होता है एएनसी जांच
एनएफएचएस 5 के आंकड़ों के मुताबिक 15 से 49 साल में गर्भधारण करने वाली जिले की 70 फीसदी महिलाएं एनीमिया से प्रभावित होती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जिले की महज 41.6 फीसदी गर्भवती महिलाएं ही प्रथम तिमाही के दौरान अपना एएनसी जांच कराती हैं। वहीं संपूर्ण प्रसव काल के दौरान महज 25.8 फीसदी गर्भवती महिलाओं का ही चार एएनसी जांच संभव हो पाता है।

जागरूकता से मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी संभव :

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ मोईज ने कहा मातृ-शिशु दर के मामलों पर प्रभावी नियंत्रण में जागरूकता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि गर्भवास्था के दौरान महिलाओं को सामान्य से अधिक आयइरन की जरूरत होती है। ताकि शरीर में खून संबंधी जरूरतों का पूरा किया जा सके। इसके लिये उन्हें नियमित रूप से आयरन की गोली खाने की सलाह दी जाती है। जो उन्हें सरकार द्वारा नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है। सेविका व आशा द्वारा उन्हें बेहतर खानपान की जानकारी दी जाती है। इस दौरान महिलाओं को अपने आहार में मौसमी फल, मछली-मांस, अंडे, दाल, हरी सब्जी, फलियां, मेवा, अंकुरित अनाज नियमित रूप से सेवन की सलाह दी जाती है।

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