नियमित जांच व समुचित निगरानी से गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं से बचाव संभव

अररिया, रंजीत ठाकुर किसी महिला के लिये मां बनना एक अनूठा एहसास होता है। सुविधाजनक व सुरक्षित तरीके से एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देना गर्भधारण करने वाली हर एक महिला की पहली चाहत होती है। हाल के वर्षों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी को लेकर विभिन्न स्तरों से किये गये प्रयासों की वजह से आज बेहद आसान हो चुका है। लेकिन कुछ एक कारणों की वजह से कुछ महिलाओं का प्रसव सामान्य महिलाओं की तुलना में अधिक जटिल हो जाता है। इसे हाई रिस्क प्रेगनेंसी के तौर पर जाना जाता है। गर्भधारण करने वाली हर 100 में से 10 महिलाओं को हाई रिस्क प्रेगनेंसी का खतरा संभावित माना जाता है। हाई रिस्क प्रेगनेंसी को जच्चा-बच्चा के मौत संबंधी मामलों का बड़ा कारण है। लिहाजा स्वास्थ्य विभाग ससमय ऐसे मामलों को चिह्नित करते हुए विशेष निगरानी व सुरक्षात्मक उपाय सुनिश्चित कराते हुए गर्भावस्था से संबंधित ऐसे जटिल मामलों का सफल निष्पादन पर विशेष जोर दे रहा है।

एचआरपी संबंधी मामलों के कुशल प्रबंधन को लेकर विभाग संवेदनशील


हाई रिस्क प्रिगनेंसी यानी एचआरपी संबंधी मामलों के कुशल प्रंबधन को लेकर विभागीय इंतजामों की जानकारी देते हुए सिविल सर्जन डॉ विधानचंद्र सिंह ने बताया कि एचआरपी संबंधी मामलों को चिह्नित करने के मामले में प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षित योजना का सफल संचालन बेहद उपयोगी साबित हा रहा है। इसके माध्यम से प्रसव संबंधी जटिल मामलों में भी सुविधाजनक व सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा देने की पहल की जा रही है। उन्होंने बताया कि हाल के वर्षों में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सकीय सुविधाओं तक लोगों की पहुंच आसान हुई है।

वीएचएसएनडी के सफल संचालन पर विशेष जोर, आशा कार्यकर्ताओं की सक्रियता व गर्भवती महिलाओं के ट्रेकिंग व ट्रेसिंग संबंधी इंतजाम को बेहतर बनाने के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं के चार एएनसी जांच सुनिश्चित कराने को लेकर किये जा रहे प्रयास इस दिशा में बेहद कारगर साबित हुए हैं। उन्होंने बताया कि इसे लेकर संबंधित एएनएम, आशा कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से जरूरी प्रशिक्षण दिया गया है। जो हाई रिस्क प्रिगनेंसी संबंधी मामलों के कुशल प्रबंधन में बेहद सहायक साबित हो रहा है।

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प्रथम तिमाही में गर्भवती महिलाओं चिह्नित करना जरूरी

जिला मूल्याकंन व अनुश्रवण पदाधिकारी पंकज कुमार ने बताया कि हाई रिस्क प्रिगनेंसी संबंधी मामलों के कुशल प्रबंधन में प्रथम तिमाही के दौरान गर्भवती महिलाओं को चिह्नित कर जरूरी जांच व दवा के साथ महत्वपूर्ण चिकित्सकीय सुझाव का अनुपालन जरूरी है। उन्होंने बताया कि विभागीय स्तर से वर्ष 2024-25 में प्रथम तिमाही में गर्भवती महिलाओं के एएनसी जांच को 01 लाख 10 हजार 856 का लक्ष्य निर्धारित है। निर्धारित वार्षिक लक्ष्य की तुलना में इसे लेकर मासिक लक्ष्य 9236 निर्धारित है। चालू वित्तीय वर्ष में बीते अप्रैल माह में प्रथम तिमाही में गर्भवती महिलाओं के एएनसी जांच संबंधी उपलब्धि 9706 है। जो निर्धारित लक्ष्य का 105 फीसदी के करीब है। वहीं हाई रिस्क प्रिगनेंसी को लेकर वार्षिक लक्ष्य 11 हजार 85 निर्धारित है। बीते अप्रैल माह में एचआरपी संबंधी 236 मामले चिह्नित किये गये हैं।

पहले की तुलना में ज्यादा आसान हो चुका है एचआरपी का प्रबंधन

जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम संतोष कुमार ने बताया कि सेवा व सुविधाओं के विस्तार के कारण एएनसी जांच के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। मातृ-शिशु स्वास्थ्य की मजबूती के लिये विभागीय स्तर से भी इस पर विशेष जोर दिया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि गर्भधारण करने वाली 100 में से 10 महिलाओं को एचआरपी का खतरा होता है। गर्भावस्था के दौरान खून या अन्य पोषक तत्वों की कमी, हाईपरटेंशन, डायबिटीज, एचआईवी, गर्भ में जुड़वा बच्चे होना, पिछला प्रसव सिजेरियन होना या गर्भपात होना, कम या ज्यादा उम्र में गर्भधारण इसका कारण हो सकता है। विशेषज्ञ चिकित्सक व जरूरी चिकित्सकीय सुविधाओं की उपलब्धता, प्रशिक्षित व अनुभवी कर्मियों की उपलब्धता के कारण समय रहते अब इसका कुशल प्रबंधन अब पहले की तुलना में बेहद आसान हो चुका है।

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