अररिया, रंजीत ठाकुर। सूबे में सोनपुर मेला के बाद अपना अलग स्थान रखने वाला फारबिसगंज का ऐतिहासिक काली मेला सरकार के उदाशीनता का भेंट चढ़ गया। सवा सौ साल के इतिहास में पहली बार हुआ जब फारबिसगंज का काली मेला नहीं लगा। इससे क्षेत्रों के लोगों में मायूसी है। शहर के युवा अधिवक्ता राहुल रंजन बताते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले इस ब्रिटिश कालीन में का इतिहास करीब 125 वर्ष पुराना है। बिहार के सोनपुर मेले के बाद किसी जमाने में यह मेला दूसरा स्थान रखता था। इस ऐतिहासिक मेले में पूर्णिया एवं कोसी कमिश्नरी के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल के मोरंग, सुनसरी, सप्तरी आदि जिले के लोग पहुंचते थे।
करीब डेढ़ माह की अवधि वाली इस काली पूजा मेला का इंतजाम दो दशक पहले तक पूर्ण रूप से प्रशासन के हाथ में रहा करता था । मगर इसके बाद ठेकेदारी प्रथा के साथ ही व्यवस्था में बदलाव आने लगा । पहले लोग एक वर्ष तक इस मेला के लगने का इंतजार करते थे। मेला के लगने के साथ ही लोग परिवार के साथ न केवल इसका लुफ्त उठाते थे बल्कि जमकर खरीददारी करते थे। तब लोगों को मेले में आकर किसी धार्मिक उत्सव में शामिल होने का एहसास होता था। इस मेले में चार दशक पूर्व तक हाथी, घोड़े, ऊंट व भैंस की बड़े पैमाने पर खरीद बिक्री हुआ करती थी। खरीदार कई दिनों तक इस मेले में रहकर मनपसंद सामानों के साथ-साथ पशुओं की भी खरीदारी करते थे।
रात में सर्कस, थियेटर, सिनेमा आदि पूर्व तक हाथी, घोड़े, ऊंट व भैंस की बड़े पैमाने पर खरीद बिक्री हुआ करती थी। खरीदार कई विभिन्न तरह के मनोरंजन कार्यक्रम का लुफ्त उठाते थे। प्रशासन की ओर से भी विभिन्न शिक्षाप्रद ज्ञानवर्द्धक प्रदर्शनी लगाई जाती थी। नाटक, कुश्ती, मौत का कुआं, झूला, जादू, मीना बाजार, मुंबई बाजार के अलावा देश के नामी गिरामी कंपनियों के प्रचार के लिए स्टॉल लगाया जाता था जिसको देखने के लिए दूरदराज से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की जमघट लगी रहती थी।
इस मेले में लोग सपरिवार आकर खरीदारी किया करते थे। मेले के समय शहर की सारी दुकानें सहित सिनेमा हॉल भी मेला ग्राउंड में शिफ्ट हो जाया करते थे। नेपाल के थारू प्रजाति के लोग की भीड़ मेले में चार चांद लग जाता था। लेकिन यह पहला मौका है जब मेला नहीं लगने से लोगों में उदासी है अनुमंडल के लोगों को उम्मीद है कि इस बार अगर अनुमंडल प्रसाशन एवं नगर परिषद के द्वारा अगर मेले लगाने को लेकर पहल की गई तो नए वर्ष 2024 में लोग इस ऐतिहासिक मेले का लुफ्त अवश्य उठाएंगे।