नहाय-खाय के साथ कल से छठ महापर्व की शुरुआत

न्यूज़ क्राइम 24 डेस्क: भगवान सूर्य की आराधना का छठ पर्व सोमवार को नहाया-खाय के साथ शुरू हो गया है. 9 नवंबर को खरना, 10 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्य और 11 नवंबर को प्रात: कालीन अर्घ्य दिया जाएगा. मान्यता है कि छठ पूजा के चार दिनों के दौरान सूर्य और छठी माता की पूजा करने वाले लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है.

नहाय-खाय, जानिए इसका महत्व-

छठ पूजा में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है. चार दिनों के महापर्व छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. इस दिन व्रती स्नान करके नए कपड़े धारण करती हैं और पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करती हैं. व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के बाकी सदस्य भोजन करते हैं. नहाय-खाय के दिन भोजन करने के बाद व्रती अगले दिन शाम को खरना पूजा करती हैं. इस पूजा में महिलाएं शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाकर उसे प्रसाद के तौर पर खाती हैं और इसी के साथ व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मईया) का आगमन हो जाता है.

दूसरा दिन-खरना-

छठ पर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है. पूरे दिन महिलाएं व्रत रखने के बाद शाम को भोजन करती हैं. खासतौर पर इस दिन गुड़ की खीर बनाई जाती है.  इसके  अलावा खीर को मिट्टी के चूल्हे पर बनाने की परंपरा है.

तीसरा दिन सांध्या अर्घ्य-

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इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है. प्रसाद तथा फल की टोकरी सजा कर व्रती इस दिन शाम के समय किसी तालाब या नदी के घाट पर जाती हैं.  महिलाएं छठी मैया की पूजा-अर्चना करने के बाद पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं.

चौथा दिन प्रात:कालीन अर्घ्य-

छठ पूजा के चौथे दिन महिलाएं व्रत का पारण करती हैं. इस दिन महिलाएं सुबह के समय घाट पर जाकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं. इसी के साथ छठ पूजा का समापन होता है.

क्या है छठ पर्व का महत्व-

छठ पूजा का महत्व बहुत ज्यादा है। यह व्रत सूर्य भगवान, उषा, प्रकृति, जल, वायु आदि को समर्पित है। इस त्यौहार को मुख्यत: बिहार में मनाया जाता है। इस व्रत को करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है। कहा जाता है कि यह व्रत संतान की रक्षा और उनके जीवन की खुशहाली के लिए किया जाता है। इस व्रत का फल सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति से भी ज्यादा होता है। सिर्फ संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।

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